Wednesday, October 19, 2011

दिल में जगाकर प्यास कहां तुम चले गए...



गजल सम्राट जगजीत सिंह का छत्तीसगढ़ से गहरा लगाव रहा। पिछले महीने चक्रधर समारोह में उनकी गजलें उनके जीवन काल की आखिरी प्रस्तुति थीं। उनके साथ गुजारे पलों को एक चाहने वाले ने कुछ यूं कलमबद्ध किया...

शाइरी भी उसके पहले थी अशआर भी उसके पहले
गज़ल भी उसके पहले थी फनकार भी उसके पहले
शेरो सुखन के दीवाने पहले भी थे दुनिया में
सजते थे मौसीक़ी के बाजार भी उसके पहले

लेकिन थी फ़क़त चन्द लोगों की खातिर ये शाइरी
रिवायत के दायरों में ही उलझी थी ये गज़ल
जम्हूर को पता न था कि गज़ल है क्या
फ़क़त अदब की बज्मों में सिमटी थी ये गज़ल

तभी लेके आया वो एक रूहानी सी आवाज़
सुनके जिसे काइनात भी रुक सी गयी एक पल को
उसने सिखाया दुनिया को कि गज़ल है क्या

जहान के हर गोशे में पंहुचा दिया गज़ल को
अशआर में मिलाकर मखमली अंदाज़
आवाज़ की ख़ुशबू से महका दिया गज़ल को

ये बेमिसाल फऩकार ये तलफ्फुज का बादशाह
मुझको तो मौसीक़ी का ताजमहल लगता है
जगजीत ने गज़ल को अपना लिया है यूँ
उसके मुंह से निकला हर लफ्ज़ गज़ल लगता है

जगजीत तेरे बिना गज़ल में कोई मज़ा नहीं
लफ्ज़ तो हैं बोहोत मगर काफिया नहीं

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