Monday, August 22, 2011

छत्तीसगढ़ की सरजमी पर असहयोग की रिहर्सल


महात्मा गांधी को मिली आंदोलन की शुरुआती प्रेरणा



अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख देने वाले महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन की पूर्वपीठिका दरअसल कहीं और नहीं छत्तीसगढ़ की धरती पर रची गई। आंदोलन शुरू करने तत्कालिक वजहों में धमतरी का कंडेल नहर सत्याग्रह अंग्रेजों के लगान वूसली का विरोध प्रमुख कारण था। आजादी के आंदोलन के इस अहम पहलू से कम लोग वाकिफ हैं कि दरअसल महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन की प्रेरणा और उसका रिहर्सल धमतरी के कंडेल नहर सत्याग्रह में देखने को मिला था। अंग्रेजों के जुल्म और जोर-दबरदस्ती का लोगों ने मुंहतोड़ जवाब दिया। हालांकि इस ऐतिहासिक तथ्य को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जोरशोर से उठाते रहें हैं। इतिहासकारों ने दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर इसका गाहे-बगाहे उल्लेख किया है।
बारिश में पानी चोरी का आरोप
जुलाई १९२० में लगान के अंग्रेजी फरमान का झूठ असानी से पकड़ा जा सकता है। सावन के महीने में जब घनघोर बारिश से खेत लबालब थे उस वक्त अंग्रेज अफसरों ने किसानों पर नहर से पानी चोरी का आरोप मढ़ा। यह ग्रामीणों को इतना नागवार गुजरा कि लोग काम छोड़कर सड़क पर उतर आए। दमन के जोर से किसानों के जानवर और घरों का सामान तक की नीलामी शुरू कर दी। अंग्रजों को असहयोग की ऐसी शुरुआती मिसाल कहां मिलेगी कि सार्वजनिक हाट बाजार में निलामी के लिए पशुओं का कोई खरीदार नहीं मिला। मजबूर होकर अंग्रेजों को झुकना पड़ा। इतिहास में यह घटना आजादी के आंदोलन की तत्कालीन मिसाल साबित हुई। यह आंदोलन स्वतंत्रता सेनानी छोटे लाल श्रीवास्तव और दुर्गा शर्मा के नेतृत्व में चरम तक पहुंचा।
गांधीजी खिंचे चले आए
कंडेल सत्याग्रह की ख्याति इतनी कि गांधीजी यहां खिंचे चले आए। उन्हें छत्तीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले पं. सुंदरलाल शर्मा लेकर आए थे। गांधीजी के हस्तक्षेप के बाद किसानों का लगान माफ कर दिया गया। पूर्व सांसद केयूर भूषण को कंडेल सत्याग्रह अध्येता हैं। उन्होंने इससे जुड़े कई संस्मरण लिखे हैं। उनके अलावा इतिहासकार डा. रमेंद्रनाथ मिश्रा भी इस आंदोलन को असहयोग आंदोलन का रिहर्सल मानते हैं। उन्होंने बताया कि गांधीजी यहां से सीधे कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में हिस्सा लेने गए, जहां असहयोग आंदोलन से संबंधित कई प्रस्ताव पारित किए गए, जिस पर इस आंदोलन की छाया स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
ये भी हैं अनोखी मिसाल
- १९२२ को कोतवाली में १७ वर्दी वालों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने अधिकारियों का यह फरमान मानने से इनकार दिया कि आंदोलन कर रहे स्वतंत्रता सेनानी और नेताओं पर खिलाफ डंडे बरसाएं। उन्होंने तत्काल कोतवाली में अपनी वर्दी जमा कर दी।
- १३३० से ३३ के बीच सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान रतनपुर में रजवाड़ों की एक बैठक आयोजित की गई। दस्तावेजी साक्ष्य बताते हैं कि अंग्रेजों के दबाव में इसमें धर्म के आधार पर लोगों को आंदोलन में शामिल नहीं होने के लिए डराने की कोशिश की। हालांकि इसमें अंग्रेजों की एक नहीं चली।

Saturday, August 6, 2011

पे्रमचंद की कहानियों में बचपन

प्रेमचंद जयंती पर दोस्त के लिए लिखे उदगार




कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है । हमारे समाज में जो भी घटित होता है, उसका प्रतिबिंब हमारे साहित्य में उजागर होता है । जहाॅं एक ओर साहित्य हमारे समाज की परिस्थितियों पर पैनी निगाह रखता है तो वहीं दूसरी ओर सच्चा साहित्य हमारी समस्याओं का हल खोजने की कोषिष भी करता है, और षायद इसलिए, सच्चे साहित्य की रचना करने वाले का दायित्व भी एक समाज सुधारक से बढ़कर हो जाता है । देष और समाज के प्रति समर्पित साहित्यकार ही सच्चे अर्थाें में कालजयी और प्रेरणास्पद साहित्य का सृजन कर सकता है । एक ऐसे ही प्रतिबद्ध देषभक्त साहित्यकार हैं - मुंषी प्रेमचंद, जिनका नाम न केवल हिन्दी साहित्य का पर्याय है, बल्कि पूरे विष्व साहित्य में भी उनकी गिनती श्रेष्ठतम रचनाकारों में होती है ।
31 जुलाई 1880 को जन्मे मुंषी पे्रमचंद का असली नाम धनपत राय था । पे्रमचंद जी ने अपने लेखन की षुरूआत उर्दू भाषा में नवाबराय के नाम से की । यह अजीब इत्तेफाक है कि जिनका असली नाम धनपत राय था, नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखा, वह पे्रमचंद के नाम से पूरी उम्र भर गरीबी और तंगहाली से जूझता रहा ।
आज मुंषी पे्रमचंद जी की 132 वीं जयंती है । 08 अक्टूबर 1936 को इस संसार से विदा लेने वाले महान लेखक प्रेमंचद और उनके साहित्य के योगदान का लेखा-जोखा आज तक हो रहा है, लेकिन उनके कृतित्व का समुचित मूल्यांकन अभी भी बाकी है। यूं तो पे्रमचंद जी ने समाज के हर पहलुओं पर और समाज के हर वर्ग के लिए लिखा है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि उन्होंने बच्चों के लिए भी महान साहित्य-सृजन किया है, जबकि यह माना जाता है कि बच्चों के लिए साहित्य रचना सबसे कठिन कार्य होता है ।

हमें यह मानना होगा कि जो समाज अपने बच्चों की परवाह नहीं करता, वह अपना भविष्य कभी नहीं बना सकता । षायद इस तथ्य को प्रेमचंद बखूबी जानते थे, तभी तो उनकी लगभग 300 कहानियों में हमें बहुत सी कहानियां ऐसी मिलेंगी, जिनमें प्रेमचंद जी ने बचपन के विभिन्न रंगों को हमारे सामने पेष किया है ।

बच्चों का मन हमारी सच्ची पाठ्यपुस्तक हो सकता है । पे्रमचंद जी ने इस तथ्य को ध्यान में रखकर बाल मनोविज्ञान को बड़ी ही सूक्ष्मता और कुषलता के साथ अपनी कहानियों में अंकित किया है। इसी संदर्भ में उल्लेखनीय कहानी है- बड़े भाई साहब - इस कहानी में एक किषोर होता हुआ बड़ा भाई अपने चंचल और मनमौजी छोटे भाई को सफल और अनुषासित जीवन की सीख देने के लिए स्वयं त्याग और अनुषासन का कठोर जीवन अपनाता है ताकि उसका छोटा भाई आगे चलकर अच्छा इंसान बन सके । लेकिन वास्तविकता यह है कि स्वयं बड़े भाई साहब भी अपनी उम्र के बच्चों की तरह मौज-मस्ती करना चाहते हैं, उछल-कूद करना चाहते हैं, कनकौए उड़ाना चाहते हैं, बचपन का पूरा आनंद उठाना चाहते हैं, लेकिन कहीं छोटा भाई बिगड़ न जाए, इस आषंका से वे आत्म-संयमित रहने की भरसक कोषिष करते हैं। यह कहानी हमें बताती है कि बच्चों पर असमय बड़प्पन का बोझ लादने से वे उम्र से पहले ही बूढ़े हो जाते हैं। बच्चों को बच्चे ही रहने दिया जाय तो यही बच्चों के बचपन से सच्चा न्याय होगा।
पर बात यहीं नहीं रूकती । पे्रमचंद ने यह भी बताया है कि बच्चे स्वतः स्फूर्त भावना से वह काम भी कर सकते हैं, जो बड़े लोग अपने बुजुर्गा के लिए भी नहीं कर पाते । पे्रमचंद जी की सुप्रसिद्ध कहानी ईदगाह का हामिद, हिन्दी ही नहीं बल्कि समूचे विष्व साहित्य की कहानियों का अमर पात्र बन चुका है। चार-पाच साल का नन्हा हामिद, अपनी जेब में कुल तीन पैसे लेकर बड़ी हसरतों के साथ अपने दोस्तों के संग ईदगाह जाता है, पर न जाने कैसे उसकी कर्तव्य भावना स्वतः जाग्रत है और वह अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद लाता है। उसे याद है कि हर रोज रोटियां सेंकते समय उसकी दादी के हाथ जल जाते हैं, यही संवेदना बच्चे हामिद को महान बनाती है ।

जब दादी उसे चिमटा खरीद लाने के लिए बुरी तरह डाॅटती है तो हामिद का बड़ा की मासूम जवाब मिलता है - तुम्हारी उंगलियां तवे से जल जातीं हैं न, इसलिए लाया हूं - षायद यह जवाब समूचे विष्व साहित्य का सबसे मासूम जवाब है । अब देखिए, दादी अमीना की आॅंखों से ममता के झर-झर आसू बह रहें हैं और हामिद के लिए मन से हजारों पवित्र दुआएं निकल रही है।
पे्रमचंद की एक और अमर कहानी है- बूढ़ी काकी । एक मषहूर अंग्रेजी साहित्यकार ने कहा है- द चाईल्ड ईज़ फादर आॅफ मैन । संभवतः यह उक्ति बूढ़ी काकी नामक कहानी पर पूरी खरी उतरती है ।
कहानी की मुख्य पात्र बूढ़ी काकी को पूरा परिवार तिरस्कृत करता है, यदि किसी को काकी से सहानुभूति और प्यार है तो केवल उनकी पोती लाड़ली को । इस कहानी में बच्ची लाड़ली के चरित्र के माध्यम से प्रेमचंद जी बताना चाहते हैं कि हमारे समाज में बुज़ुर्गांे की परवाह किसी को नहीं है, केवल बच्चे ही हैं जो अपने बुजुर्गाें को सम्मान और प्यार देते हैं और षायद, बुजु़र्गाें और बच्चों के प्रगाढ़ रिष्तों ने ही आज हमारे परिवार कंे स्वरूप को बचाकर रखा हुआ है, यानि हम कह सकते हैं कि बच्चे ही परिवार की धुरी हैं ।
मित्रों, प्रेमचंद जी की समग्र कहानियों को पढ़ने से हमें पता चलता है कि जिस प्रकार सूरदास जी ने अपने काव्य में श्रीकृष्ण के माध्यम से बाल्यकाल के विभिन्न चित्र खींचे हैं, उसी प्रकार प्रेमचंद जी ने मनुष्यता के सबसे पवित्र रूप- बचपन के विविध आयामोें को अपनी कई कहानियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है । आज प्रेमचंद की कहानियां हमें सीख देतीं हैं कि हर बच्चे को उसका पूरा अधिकार मिले, किसी बच्चे से उसका बचपन न छीना जाए। याद रखें कि बच्चे ही हमारे देष और समाज का भविष्य हैं । खुषहाल बच्चों से ही खुषहाल देष बनाया जा सकता है, बचपन हर बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है- पे्रमचंद जी के साहित्य के माध्यम से इससे बड़ा पैगाम और क्या हो सकता है ?
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सत्येन्द्र कुमार
सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिवनी (म.प्र.)