Saturday, July 30, 2011

मंदिरों का शहर


रायपुर शहर मंदिर और मठों की अपनी समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है। शहर ही नहीं जिले में विभिन्न राजाओं द्वारा आकर्षक व भव्य मंदिरों का निर्माण कराया गया। महामाया, दूधाधारी, राजिम स्थित राजीव लोचन, दामाखेड़ा का कबीर आश्रम आदि प्राचीन काल से ही भक्ति और आस्था का केंद्र बने हुए हैं।


दूधाधारी मठ
दूधाधारी मठ शहर का सबसे प्राचीन मंदिर है। मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में कलचुरी राजा जैत सिंह के समय हुआ था। वैष्णव संप्रदाय से संबंधित इस मंदिर में रामायण कालीन दृश्यों का शिल्पांकन बहुत आकर्षक तरीके से किया गया है। मंदिर में मराठा कालीन पेंटिंग आज भी मौजूद हैं। इसके नाम को लेकर किंवदंतियां प्रचलित है। राजस्थान के झींथरा नामक स्थल के संत गरीबदास ने यहां अपना डेरा जमाया था। उनकी परंपरा में संत बलभद्रदास हुए, जो भोजन में अनाज के स्थान पर केवल दूध लेते थे। उन्हें दूधाधारी महाराज संबोधित करते थे। बाद में इसी आधार पर मठ का नाम भी दूधाधारी प्रचलित हो गया। विद्वानों का कहना है कि मंदिर के निर्माण में सिरपुर से लाई गई पुरा सामग्री का प्रयोग किया गया है। भगवान रामचंद्र का मंदिर के अलावा यहां मारुति मंदिर भी दर्शनीय है।

महामाया मंदिर


महामाया मंदिर रायपुर का प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है और आस्था के प्रमुख केंद्र है। नवरात्र पर्व में छत्तीसगढ़ समेत यहां कई राज्यों के भक्तों का मेला लगा रहता है। इस मंदिर का निर्माण भी कलचुरी शासकों ने कराया था। मान्यता है कि राजा मोरध्वज ने महिषासुरमर्दिनी की अष्टïभुजी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में की थी। महामाया की प्रतिष्ठा कलचुरी शासकों की कुलदेवी के रूप में भी है। माना जाता है कि रतनपुर के कलचुरियों की एक शाखा जब रायपुर में स्थापित हुई तो उन्होंने अपनी कुलदेवी महामाया का भव्य मंदिर यहां भी बनवाया। यहां मंदिरों की श्रृंखला में मुख्य मंदिर के अलावा समलेश्वरी देवी, काल भैरव, बटुक भैरव और हनुमान मंदिर दर्शनीय हैं।

हटकेश्वर महादेव मंदिर
खारुन नदी के तट पर स्थित महादेव घाट धार्मिक आस्था का केंद्र तो है ही अब यह धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित होता जा रहा है। यहां का पुन्नी मेला और शिवरात्रि मेला की विशेष ख्याति है। दूर-दूर से लोग हटकेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। शिलालेखों से पता चलता है कि कलचुरी राजा हाजीराज ने हटकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर बाहर से आधुनिक प्रतीत होता है, लेकिन संपूर्ण संरचना को देखने से इसके उत्तर मध्यकालीन होने का अनुमान लगाया जाता है। बताते हैं, रायपुर के कलचुरी शासकों ने सबसे पहले इसी क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाया था। महादेवघाट में ही विवेकानंद आश्रम के संस्थापक स्वामी आत्मानंद की समाधि भी स्थित है।

जैतूसाव मठ
पुरानीबस्ती क्षेत्र में स्थित जैतूसाव मठ में लक्ष्मीनारायण का दर्शनीय मंदिर है। इस मंदिर को वास्तु विन्यास के आधार बनाने का दावा किया जाता है। मंदिर के महंत लक्ष्मीनारायण दास ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, इसलिए यह स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधियों का भी प्रमुख केंद्र बना रहा। महात्मा गांधी समेत कई राष्टï्रीय नेताओं ने इस मंदिर में प्रवास किया।

मंदिरों का सुंदर समूह (राजिम)
राजधानी के दक्षिण-पूर्व में 48 किमी दूर राजिम महानदी, पैरी एवं सोंढ़ूर नदी के संगम पर स्थित है। इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। इन दिनों इसकी ख्याति वार्षिक कुंभ के रूप में देशभर में फैल गई है। यहां कुलेश्वर महादेव, राजीव लोचन, और राजेश्वर मंदिरों का एक सुंदर समूह है। इनमें 11वीं शताब्दी का कुलेश्वर महादेव मंदिर 17 फीट ऊंची अष्टïभुजाकार जगती पर बनाया गया है। राजीव लोचन मंदिर में विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा स्थापित है। राजीव लोचन मंदिर के पश्चिम में प्रकोष्ठ से बाहर तथा द्वार प्रकोष्ठ से 18 फीट हटकर पूर्वाभिमुख अवस्था में राजेश्वर मंदिर स्थित है। यह मंदिर भी दो फीट आठ इंच जगती पर बना हुआ है।

वल्लभाचार्य की जन्म स्थली चंपारण्य
राजिम से 10 किमी दूर चंपारण्य वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य की जन्म स्थली है। 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक में वल्लभाचार्य के अनुयायियों ने उनकी स्मृति में एक मंदिर का निर्माण किया, जहां हर वर्ष जनवरी-फरवरी में मेला लगता है। पास के जंगल में राजिम के समान चंपकेश्वर महादेव का एक पुराना मंदिर है। आरंग में 11वीं शताब्दी भांडदेवल जैन मंदिर के अलावा बाघदेवल, महामाया और दंतेश्वरी मंदिर हैं।

कौशल्या की जन्म स्थली चंदखुरी
राजधानी से 17 किमी दूर स्थित चंदखुरी को भगवान राम की मां कौशल्या की जन्म स्थली माना जाता है। यहां के मंदिर की विशेषता है कि यह तालाब के बीच में स्थित है। पूजा-अर्चना के लिए मंदिर तक पहुंचने 2001 में पुल बनाया गया है। यहां पर पत्थरों से निर्मित एक शिव मंदिर है, जो 8वीं शताब्दी का है। यह वास्तु शिल्प का अद्भुत नमूना है।

ेकबीरपंथियों का तीर्थ दामाखेड़ा

रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर सिमगा से 10 किमी दूर स्थित दामाखेड़ा कबीरपंथियों के तीर्थ के रूप में विख्यात है। इस पंथ के मानने वालों का यह छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। यहां कबीर मठ की स्थापना 100 साल पहले पंथ के 12वें गुरु उग्रनाम साहब ने की थी। यहां के समाधि मंदिर में कबीर की जीवनी बड़े ही मन मोहक और कलात्मक ढंग से दीवारों पर नक्काशी कर उकेरा गया है। दामाखेड़ा में हर साल माघ शुक्ल दशमी से माघ पूर्णिमा तक संत समागम समारोह आयोजित किया जाता है। यहां दशहरा पर्व भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाने की परंपरा है, क्योंकि इसी दिन दामाखेड़ा में वंश की स्थापना हुई थी।

No comments:

Post a Comment